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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

01 August 2017

पापा की बदलती भूमिका के लिए सोचा जाना ज़रूरी


हाल ही में मुंबई की टेक कंपनी सेल्सफोर्स ने अपने  पुरुष कर्मचारियों को पिता बनने पर  तीन महीने की पैटरनिटी लीव यानि कि पितृत्व अवकाश देने का फैसला किया है। भारत में सबसे लम्बा पितृत्व अवकाश देने पहली कंपनी बनी सेल्सफोर्स टेक ने अपने कर्मचारियों को बेहतर  ज़िन्दगी देने की कोशिश के तहत यह निर्णय  लिया है। कंपनी के मुताबिक  वैतनिक पैटरनिटी लीव कर्मचारियों के  लिए  एक सही कदम है क्योंकि कई बार अभिभावकों को अवैतनिक अवकाश लेकर अपनी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं | साथ ही यह अपने कर्मचारियों के साथ सही और अच्छे व्यवहार का तरीका भी है। पिता बनना एक बड़ी जिम्मेदारी का काम है। ऐसे में जब अभिभावकों को  अवैतनिक अवकाश लेना पड़े तो  स्थितियां और ज्यादा चुनौती पूर्ण हो जाती हैं। कंपनी का यह भी कहना है कि देश में लोग पैटरनिटी लीव के बारे में बात करें यह जरूरी है | इससे  महिलाओं के साथ भेदभाव को कम किया जा  सकता है |   

कामकाजी अभिभावकों के लिए सामाजिक-पारिवारिक और आर्थिक मोर्चे पर यह सुखद पहल है कि अब पितृत्व अवकाश के बारे में भी गंभीरता सोचा जा रहा है | ख़ासकर भारत  जैसे देश में, जहाँ बच्चे के जन्म के बाद सारी जिम्मेदारियाँ माँ के हिस्से ही आती हैं | यूँ भी देखने में आ रहा है कि  हमारे परिवारों में बच्चे के जन्म और जिम्मेदारियों से जुड़ी बहुत ही बातों में अब पिता की भूमिका बढ़ रही है। यही वजह है कि तीन महीने की पैटरनिटी लीव दिए जाने का यह फैसला वैचारिक ही नहीं व्याहारिक रूप से भी बड़ा बदलाव लाने वाला है | गौरतलब है कि हमारे यहाँ सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए  छठे वेतन आयोग में पितृत्व अवकाश की योजना लागू की गयी है।  यह अवकाश कुल 15 दिनों का होता है | पिता बनने वाले पुरुष पूरी नौकरी के दौरान इसका  दो बार उपयोग कर सकते हैं।  यह सुविधा बच्चे के जन्म से 15 दिन पहले या जन्म की तारीख से छह माह के भीतर ली जा सकेगी। खास बात यह  है कि पितृत्व अवकाश को किसी भी दशा में  अस्वीकृत नहीं किया जा सकता । लेकिन निजी कम्पनियों के पुरुष कर्मचारियों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है |  लेकिन अब कई निजी कम्पनियां अपने कर्मचारियों  की सहूलियत के लिए ऐसी सराहनीय पहल कर रही  हैं |  

दरअसल, बीते कुछ सालों में हमारे यहाँ कामकाजी  माँओं  की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। इनमें अधिकतर युवा महिलाएं हैं जो शिक्षा, बैंकिंग, आई टी और यहाँ तक की सैन्य बलों में भी अपना अहम् स्थान बना चुकी हैं । गौरतलब है कि इसी आयु वर्ग पर मातृत्व और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी भी होती है । यही वजह है कि बीते साल मैटरनिटी लीव संशोधन बिल पारित कर मातृत्व अवकाश को 12 हफ्तों से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर कर दिया गया था । इसके अलावा जो महिलाएं  गोद कर या सैरोगेसी से मां बनती हैं उनके लिए भी 12 हफ्तों के अवकाश का प्रावधान है |  इस संशोधन के बाद भारत उन यूरोपीयन  देशों की सूची में शामिल हो गया था जो सबसे ज्यादा मातृत्व अवकाश देते हैं। हालांकि जब छह माह के मातृत्व अवकाश को अनिवार्य  बनाया तब पितृत्व अवकाश को बढ़ाने की भी मांग की गई थी | वैसे भी हमारे यहाँ लम्बे समय से यह बहस जारी है कि पैटरनिटी  लीव की अवधि भी बढाई जाय । जो कि सही भी है | क्योंकि पिता बनने पर अवकाश के पल पाना हर पुरुष का अधिकार है । यकीनन मातृत्व अवकाश की तरह यह पितृत्व अवकाश भी ज़रूरी है | क्योंकि नवजात को केवल माँ की नहीं पिता की भी जरूरत होती है । साथ ही इस नई जिम्मेदारी को जीने और समझने के लिए दोनों अभिभावकों का साथ रहना एक दूजे को भावनात्मक  सम्बल भी देता है । यूनिसेफ के मुताबिक जन्म होने के सात महीने तक मां का बच्चे की अच्छे से देखभाल करना बेहद जरूरी होता है। ऐसे में नवजात की देखभाल  करते हुए महिलाओं की मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी असर पड़ता है | माँ बनने के बाद बच्चे की संभाल और अपनी सेहत की अनदेखी के मोर्चों पर जूझने वाली महिलाओं  के लिए भी पितृत्व अवकाश मददगार साबित होगी | कई सारी जिम्मेदारियों को निभाने में अपने जीवनसाथी से मिली मदद उन्हें सबल ही बनाएगी | 

समाज में एकल परिवारों की बढ़ती संख्या इस जरूरत  को और प्रासंगिक बनाती है | ऐसे समय में जब प्रसूता और नवजात दोनों को संभाल की दरकार होती है, पिता का साथ बहुत मायने रखता है |  जाहिर है कि छोटे परिवार में रहने वाली महिलाओं को ऐसे समय में पति की सहायता और संबल की जरूरत होती है |  बच्चे के जन्म के समय पिता को छुट्टी मिलना इसीलिए जरूरी लगने लगा है कि अब संयुक्त परिवार बहुत कम हो गए हैं | यूँ भी बच्चे के जन्म के पहले महीने में अस्पताल की भागदौड़, टीकाकरण और सबसे बढ़कर भावनात्मक  जुड़ाव के लिए  पिता की जरूरत होती ही है। इसमें कोई संदेह नहीं  प्रसव के समय और उसके बाद  प्रसूता का पति साथ हो तो सभी काम बेहतर  ढंग  से संपन्न हो  पाते हैं |  इतना ही नहीं आज के युवा पिता बच्चों की परवरिश में अपनी बराबर की भागीदारी निभाने की सोच भी रखते हैं | ऐसे में किसी निजी कंपनी का यह आवश्यक प्रगतिशील कदम वाकई सराहनीय है | ( दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित मेरे लेख से ) 

7 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

पुरुष को काम में भागीदार बनना ही होगा और हमारी सोसायटी का भी माइण्ड सेट करना होगा।

दिगम्बर नासवा said...

पुरुष को छुट्टियाँ मिलें ये एक अच्छा कदम है पर पुरुष को भी मानसिक रूप से सोच में बदलाव लाना होगा की वो पत्नी के साथ मिल के बच्चे और परिवार की जिम्मेवारी भी उठाये ... कंधे से कन्धा मिलाएं न की सिर्फ मजे लें इन छुट्टियों के ...

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारतीय तिरंगे के डिजाइनर - पिंगली वैंकैया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

प्रभात said...

आदरणीय नासवा जी के कमेंट में एक सच्चाई है....आपके लेख का विषय बहुत अच्छा है और अत्यंत सोचनीय।

ताऊ रामपुरिया said...

पितृत्व अवकाश एक शुभ शुरूआत है और पुरूष की सोच बदलना भी जरूरी है. लगता है अब आने वाले समय में अवकाश जैसे कदमों से एक सकारात्मक शुरूआत होगी, बहुत उपयोगी विषय पर आपके आलेख के लिये आभार.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Kailash Sharma said...

एकल परिवार की बढ़ती संख्या को देखते हुए पितृत्व अवकाश एक बहुत सराहनीय कदम...बहुत सुन्दर आलेख

ज्योति सिंह said...

अति सुंदर विषय ,बधाई हो

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